आन्दोलनमे नेताक नहि जनताक सहभागिता चाही
देश अखन एक प्रकारक संक्रमणमे अछि आ संक्रमण विविध आयाम आ स्वरुपमे उपस्थित अछि । देशसोझाँ राजनीतिक संक्रमण तँ विगत एक दशकसँ उपस्थित अछिए सँगहि अखन आनतरहक संक्रमण आ समस्यासेहो विद्यामान भऽगेल अछि । एहिमे प्रमुख अछि, प्राकृतिक आपदा । नव वर्ष २०७२ क प्रारम्भक सँगहि वैशाख १२ आ २९ गते आएल विनाशकारी भूकम्प देशक भूगोलकेँ हिला देलक । भूकम्प देशेकेँ टा नहि अपितु लोकक मोन आ मस्तिष्ककेँ सेहो अन्तरसँ जर्जर बनादेलक । बात एतहि नहि खतम भेल । ई विपदासँ लोक निकजकाँ उवरि नहि पाएल छल कि दोसर प्राकृृतिक डाँग सहवालेल लोक बाध्य भेल । ई डाँग छल सुखा आ रौदीक । ई तीनु समाजलेल संंक्रमणक रुपमे उपस्थित भेल अछि जाहिसँ उवरव लोकहेतु सहज नहि भऽ रहल छैक ।
उपर उल्लेख कएल सब अवस्थाक प्रभाव समग्रमे सम्पूर्ण देशपर पडल छैक । स्वाभाविकरुपेँ अकर विशद् प्रभाव नेपालक तराई—मधेशपरसेहो पडब स्वाभाविक अछि । राजनीतिक संक्रमणसँ आक्रान्त मधेश देशमे बनिरहल नव संविधानक माध्यमसँ अपन अधिकार, पहिचान आ सामथर््यक सुनिश्चितताक सम्वोधन चाहैत अछि । ताहिहेतु निरन्तर संघर्षरत अछि । भूकम्पक असरि किछु अपवाद छोडि मधेशक भौतिक संरचनापर ओते खास नहि पडलै । मुदा मोन फाटि गेलैक । सम्पूर्ण देश आक्रान्त रहल अवस्थामे देशक पीडाक वोध मधेशकेँ कोना नहि होइतैक ? पीडाक यथेष्ट वोध भेलै । मधेश एक भूगोल अछि । एक सभ्यता आ संस्कृति अछि । ई अलग बात छैक । मुदा आजुक दिनमे मधेशक बहुतो गोटे रोजीरोटीक सन्दर्भमे देशक विभिन्न कोनमे अछि । ई सत्य अछि । अपन लोकवेद भूकम्पसँ समस्याग्रस्त वनल अवस्थामे मधेश कोना चुप रहि सकैत छल ? मधेश सक्रिय भेल आ उदाहरण बनल । तहिना पछिला समस्या सुखा आ रौदीसँ सम्बन्धित अछि । मधेशक मुल आर्थिक कर्म कृषि अछि आ कृषि, सिँचाईक अभावमे सम्भव नहि भऽ सकैए । ई तथ्य जगजाहेर अछि । कृषिकर्मसँ जुडल अखनुक ई मौसम वरसातक अछि । मुदा दुर्भाग्य कहल जाए जे अखनधरि एहिबेर कृषिहेतु आवश्यक वर्षा नहि भेल अछि । मधेशक सब जिल्ला वर्षात्क अभावमे सुखा आ रौदी खेपिरहल अछि । राजनीति आ भूकम्पसँ समस्याग्रस्त लोकक लेल वर्षाक अभाव आहत—वर्षा कऽ रहल अछि आ लोक भोगवाहेतु बाध्य अछि । मुदा सबसँ पैघ समस्या बनल अछि राजनीतिक । संघीयताक माध्यमसँ अपन विकास, पहिचान आ सामथर््यक सम्बोधनहेतु प्रयासरत् मधेशवासी राजनीतिक वृत्तमे व्याप्त एक चर्चासँ उद्वेलित अछि । ओ चर्चा अछि, संघीयताक सम्भावित् सीमांकनक । सीमांकनकेँ लऽकऽ जाहिप्रकारक सम्भावना व्यक्त कएल जा रहल अछि ओ मधेशअनुकूल नहि अछि ।
उपरका अवस्थाक समग्र विश्लेषण कऽ समस्याक सम्बोधनक मार्ग प्रशस्त कएल जेबाक चाही । एहिदिशामे राजनीतिक दल, नेता आ सरकार आवश्यक भूमिका निर्वाह कऽ सकैत अछि । मुदा अखनधरिक अवस्थाकेँ जँ विश्लेषण कएल जाए तँ भूमिका निर्वाह करबालेल जिम्मेबार पक्ष खासे सक्रिय नहि बुझारहल अछि । ओकरासभक उदासीनता निश्चये दुखदायी छैक । भूकम्पसँ प्रभावित क्षेत्रक अध्ययन आ तत्पश्चात राहत एवं पुनर्निमाणक सन्दर्भमे सरकारद्वारा मधेशहेतु कोनो खास कार्यक्रमक तर्जुमा नहि कएलगेल अछि । एहि अवस्थामे दुख एहुसँ बेसी अकर अछि जे मधेशकेन्द्रित दल आ नेतासभक ध्यान एहिदिसि आकृष्ट नहि भेलैक । सरकारक दृष्टिकोण तँ आग्रही छले मधेशी दल आ नेतासभक ध्यानसेहो एहिसबदिसि नहि गेनाई अर्थपूर्ण अछि । रहल बात राजनीतिक, तँ एहुसन्दर्भमे मधेशकेन्द्रित दल आ नेताक स्पष्ट दृष्टिकोण सार्वजनिक नहि भेलाकारणे मधेश संघीयताक बात खटाईमे पडब निश्चित बुझारहल अछि । रहल बात सुखा आ रौदीक, तँ ई समस्या नव नहिँ अछि । विगत अनेको वर्षसँ मधेश ई समस्या भोगवाहेतु बाध्य अछि । ई समस्याक कारण विश्लेषण कएल जाए तँ सबसँ आगाँ देखवामे आएत राज्यक आग्रही सोच । वर्षा प्राकृतिक अछि । एहिमे मनुष्यक नियन्त्रण नहि छैक । एहिमे लोक किछु नहि कऽ सकैत अछि । मुदा जतऽ लोकक नियन्त्रण अछि ओ काज जँ नहिँ हुअए तँ कि कहल जाए ? तराई—मधेश कृषिक केन्द्र अछि । एहि क्षेत्रकेँ नेपालक अन्न भण्डारसेहो कहल जाइत छैक । मुदा दुर्भाग्य, राज्य एहि क्षेत्रक कृषिक विकासक सुनिश्चिततामादे किछु काज नहि कऽ सकल आ हमरालोकनिक नेता सबदिन मुक दर्शक भऽ देखैत रहि गेलाह । प्रचूर सम्भावना रहितो सिँचाईक व्यवस्थादिसि कहिओ नहि सोचल गेल । चुरे पर्वत श्रृंखलाक दोहण नियन्त्रण कऽ मरुभूमीकरण भऽरहल अवस्थादिसि कहिओ नजरि नहि लगाओल गेल आ कृषिक आधुनिकीकरणक लेल कहिओ कोनो योजना नहि बनाओल गेल । ओकरे परिणाम अछि अखुनका कृषिजन्य समस्या । ई सब समस्या समाधानहेतु दीर्घकालीन सोच आ दृष्टिकोण आवश्यक अछि । सन्तुलित आ पूर्वाग्रहरहीत विकास योजनाक तर्जुमा आ कार्यान्वयन नीति आवश्यक अछि । नेतासभकेँ भोट चाही आ भोटक बाद ओकर विश्लेषणमे जनताक सहभागिता ककरो कहिओ नहि चाही । जँ ई बात विगतमे भऽ सकितए तँ आजुक ई समस्या भोगबाहेतु मधेश बाध्य नहि रहैत । एहिदिसि सभक ध्यानाकृष्ट हएब आवश्यक अछि । ई सब बातक विश्लेषण कएलाबाद एक निष्कर्षमे पहुँचल जा सकैत अछि जे आब राजनीतिक क्रान्ति नहि देशमे मधेशमे आर्थिक क्रान्ति अपरिहार्य अछि आ एहिमे नेताक नहि जनताक सहभागिता जरुरी अछि ।
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