गंगा—स्नान
धर्मेन्द्र विह्वल
मिथिलामे विगतसँ वर्तमानधरि गंगा—स्नानक आध्यात्मिक प्रचलन रहिआएल अछि । गंगास्नान केलासँ ओहि अवधिधरिक पापक प्रायश्चित होइत अछि से विश्वास अद्यावधि कायम अछि ।
एकवेरक वात अछि । गामक महिलालोकनि गंगास्नानहेतु सिमरिया (भारतक वरौनीलग)जेवाक तयारी कऽरहल छलीह । ई देखि गोनुपत्नीक मोनमे सेहो सिमरियिा जेवाक इच्छा जागृत भेलनि । गामक महिलालोकनिकेँ प्रत्येक वर्ष सिमरिया जाइत देखि गोनुपत्नीमे सेहो सिमरियाक इच्छा जागृत हएव स्वाभाविक छल । आन महिलालोकनि हुनका व्यग्ंयसेहो मारैत जाइत छलीह—आहाँ किएक जाएव ? आहाँक सव पाप तँ गोनुए वावु प्राश्चित कऽ दैत छथि । आहाँक लेल घरे गंगासँ पैघ अछि । एहन वातसव सुनि हुनका नीक तँ नहि लगैत छलनि । मुदा गोनु वावुक स्वीकृतिविना ओ कतहु वहराइयो तऽ नहि सकैत छलीह । सँगी वहीनपासँग ओ एहिसम्वन्धमे खुलि कऽ वाजियो नहि सकैत छलीह । मुदा एहिवेर गंगास्नानक लेल पतिसँग अनुमति लेवाक नियार कऽ लेने छलीह आ एहिहेतु कोनो युक्तिक जोगाडमे छलीह ओ । प्रस्ताव वढविते स्वीकृति प्राप्त करवामे सहज हुअए से अनुकूल समयक प्रतीक्षामे ओ रहऽ लगलीह । मुदा एहन अवसरि हुनका भेट नहि रहल छलनि ।
एकवेरक वात अछि । गामक महिलालोकनि गंगास्नानहेतु सिमरिया (भारतक वरौनीलग)जेवाक तयारी कऽरहल छलीह । ई देखि गोनुपत्नीक मोनमे सेहो सिमरियिा जेवाक इच्छा जागृत भेलनि । गामक महिलालोकनिकेँ प्रत्येक वर्ष सिमरिया जाइत देखि गोनुपत्नीमे सेहो सिमरियाक इच्छा जागृत हएव स्वाभाविक छल । आन महिलालोकनि हुनका व्यग्ंयसेहो मारैत जाइत छलीह—आहाँ किएक जाएव ? आहाँक सव पाप तँ गोनुए वावु प्राश्चित कऽ दैत छथि । आहाँक लेल घरे गंगासँ पैघ अछि । एहन वातसव सुनि हुनका नीक तँ नहि लगैत छलनि । मुदा गोनु वावुक स्वीकृतिविना ओ कतहु वहराइयो तऽ नहि सकैत छलीह । सँगी वहीनपासँग ओ एहिसम्वन्धमे खुलि कऽ वाजियो नहि सकैत छलीह । मुदा एहिवेर गंगास्नानक लेल पतिसँग अनुमति लेवाक नियार कऽ लेने छलीह आ एहिहेतु कोनो युक्तिक जोगाडमे छलीह ओ । प्रस्ताव वढविते स्वीकृति प्राप्त करवामे सहज हुअए से अनुकूल समयक प्रतीक्षामे ओ रहऽ लगलीह । मुदा एहन अवसरि हुनका भेट नहि रहल छलनि ।
एकदिनक वात अछि गोनुभ्राता भोनु माछ लऔने छलाह । संयोगे कहवाक चाही गोनु वावु ओहि दिन अवेर राति भांगका नशामे घर घुरलाह । भोजनमे माछक परिकार आ दही देखि गोनु वावु खुुसी छलाह । मोन प्रफुल्लित छलनि । ई प्रफुल्लता हुनक अनुहारमे स्पष्ट देखल जा सकैत छल । खुसी किएक नहि होइन, माछ आ दही हुनक प्रिय भोजन जे छल । गोनुपत्नी पतिक अनुहारक अध्ययन केलनि । चमक सहजहि अनुभव भेलनि । हुनका वुझेलनि जे पतिक आगाँ गंगास्नानक प्रस्ताव रखवालेल एहिसँ नीक अवसरि नहि भेटत आ ओ पतिक सोझाँ प्रस्ताव रखवाक नियार केलनि ।
ओ पतिसँ मुखाकृत भेलीह— एकटा वात पुछु ?
माछक शीरा चिववैत गोनु वजलाह— कि ?
गोनुपत्नी वजलीह— आहाँ तमसाएव तँ नहि ने ?
गोनुक मुहँसँ निकललनि— पहिने वात तँ सुनी, तकरवाद ने कहव । वाते नहि सुनि कोना कहू ?
पत्नी कहलखिन— छोडू नहि कहव । आहाँ तमसाएव ।
गोनु पत्नकिेँ आश्वस्त करैत वजलाह— लिअ, कहू नहि तमसाएव ।
आव ओ प्रस्ताव राखव सहज वुझि वजलीह— गंगास्नानक लेल सभकेओ सिमरिया जा रहल अछि, हमहुँ जाऊ ?
पत्नीक प्रस्ताव सुनिते गोनुक भांगक सव नशा हेरागेलनि । हुनका पत्नीक प्रस्ताव एकोरत्ति नीक नहि लागल छलनि । मुदा, प्रत्यक्षतः ओ संयमित होइत वजलाह— लिअ,सुनू । इहो कहुँ तमसेवाक वात भेलै ? शुभ्रस्य शीघ्रम । शुभकार्यमे किएक विलम्व ?
गोनु जेवीसँ किछु पाई निकालि पत्नीकेँ देलनि आ पुछलनि— पहुँचि जाएत ने ? पहिने किएक ने वजलहुँ ? कहने रहितहुँ तँ कने वेसी पाईक व्यवस्था कएल जा सकैत छल ।
गोनु वावुक स्वीकारोक्तिक वाद गोनुपत्नी प्रसन्न छलीह । गोनु वावु एते सहजे स्वीकृति देताह तकर भरोस हुनका नहि छलनि । पतिक स्वीकृतिक वाद ओ यात्राक तयारी करऽ लगलीह ।
एहिक्रममे यात्राक प्रस्थानक दिन सेहो आविगेल । भोरे अन्हरिएमे गामक महिलालोकनि गोनुपत्नीकेँ वजावऽ लगलीह । हाक पाडऽ लगलीह । आवाज सुनि गोनुपत्नी सेहो अपन मोटरीचोटरी लऽ महिला समूहसँ भेट कऽ सिमरियादिसि प्रस्थान करवालेल वहरेलीह । तावतधरि भोनुसेहो जागिगेल छलाह । ओहो कने दूरधरि अरियातऽ भाउजक पाछाँपाछाँ एलाह ।
आगँनसँ वाहर निकलवाक कोन्टापर गोनुपत्नीकेँ कोनो पुरुषसँ ठक्कर लगलनि । दू डेग पाछाँ हटलीह मुदा पुनः पाछासँ धक्का खा आगाँ एलीह । किछुकाल इएह उपक्रममे वितल । गोनुपत्नी आगाँ आ पाछाँक पुरुषसभ के छथि ? अन्हार रहबाक कारणे चिन्हि नहि सकल छलीह । एहिक्रममे आगाँक धक्कासँ पाछा आएल गोनुपत्नी घुरि देखैत छथि दिअर मुस्किआरहल छलाह । आगाँ देखलीह पतिदेव मुस्किआरहल छथि । आगाँपाछाँक धक्काक अवरोधक कारणे हुनका बहराएल नहि भऽरहल छलनि । गामक महिलालोकनिक बजाहटक आवाज आव क्रमशः दूर भऽ रहल छल । एम्हर गोनुपत्नीकेँ वजवाक कोनो अवसरि नहि भेटिरहल छलनि । दिअर आ पतिक एहि व्यवहारसँ अकक्ष भऽ अपन मोटरीचोटरी फेकि ओ ओतहि वैसि रहलीह ।
गोनु आव पत्नीसँ पुछलनि— किए तमसा कऽ बैसि रहलहुँ ? जाएब नहि ? सभकेओ तँ चलिगेल ।
क्रोधित मुद्रामे गोनुपत्नी वजलीह—देखु घाऽऽमे नुन नहि छिटू । आब हम कोनो हालतिमे नहि जाएव ।
आब गोनु अपनाकेँ संयमित वनौलनि आ वजलाह—हमहुँ तँ इएह चाहैत छलहुँ । लोकसभ इएह धक्का खेवाहेतु तँ मेला जाइत अछि । जँ घरेमे ई धक्का भेटि जाए तखनि मेला किएक जाएव ?
गोनुपत्नीकेँ आव पतिक आशय बुझबामे आविगेल छल । ओ किछु नहि वाजि मोटरी उठा घरदिसि चलि गेलीह ।
No comments:
Post a Comment