गोनु झाक कथा
बिलाडि दूध नहि पिबैए
–धर्मेन्द्र विह्वल
मिथिलाक तात्कालीन नरेश विद्वान आ प्रतिभाशाली व्यक्तिसभकेँ अत्यन्त कदर करैत छलाह । ओ अप्पन दरबार विद्वानसभसँं सदति भरल रहए से चाहैत छलाह । एकबेरक बात अछि, नरेश अप्पन दरबारक कुशल आ चतुर व्यक्तिसभमेसँ चयन कऽ एकगोटेकेँ अप्पन सल्लाहकार नियुक्ति कर।बाक सोच बनौलन्हि । चयनक लेल दरबारियासभक बैसार बजाओल गेल । बैसारमे नरेश चतुर सहायकक परीक्षणमे सफल होबऽबलाकेँ बहुमूल्य उपहार देबाक घोषणा केलन्हि ।
बैसारमे उपस्थित सभकेओ अप्पन–अप्पन क्षमतामोताबिक चातुर्य प्रदर्शन करैत गेलाह मुदा राजाकेँ ककरोसँ सन्तुष्टि नहि भेटलन्हि । अपन ताकलमोताबिकक व्यक्ति ओहि बैसारसँ नहि प्राप्त हएत से बुझलाक बाद ओ सभक व्यवहारिक परीक्षा लेबाक निश्चय केलन्हि । मुदा परीक्षा लेबाक काज सोचलमोताबिक सहज नहि छल । मिथिलाक पण्डितगण शास्त्रीय विधामे निपूण रहल बात राजाकेँ खूब नीकजकाँ बुझल छलन्हि अन्ततः ओ निश्चित समयावधि निर्धारण कऽ व्यवहारिक परीक्षा लेबाक नियार केलन्हि ।
ओ ओतऽ उपस्थितसभकेँ एक–एकटा दूध देबऽबला महीँस आ विलाडि पकडबैत कहलन्हि– लिअ, आहाँसभ ई लऽ जाऊ, विलाडिकेँ महीँसक दूध पिएबै आ आजुक ठीक एक वर्षक बाद सभगोटे आऊ, जकर विलाडि हृष्ट पुष्ट आ बलगर हएत हम ओकरे अप्पन सल्लाहकार मनोनयन करब । एहि घोषणाक बाद राजबैसार समाप्त भऽ गेल । सभकेओ महीँस आ विलाडि लऽ अप्पन–अप्पन घर विदा भेलाह ।
सभक सपना राजाक सल्लाहकार बनब छल । निश्चय ई बड पैघ महत्वाकांक्षा छलैक सभक लेल । राजाक सल्लाहकार कोनो आजिगुजि बात तऽ छलै नहि, सभकेओ महीँस आ विलाडिक सेवामे जुटि जाइत गेलाह । मुदा गोनु बाबुक बात किछु अलग छल । विलाडिकेँ हृष्ट पुष्ट करबाक बात हुनका नहि अरघिरहल छलन्हि । किछु समय तऽ ओहो आनेजकाँं महीँसकेँ दुहलाक बाद चोट्टहि सब दूध विलाडिकेँ पिऔलन्हि । धीरे धीरे ओ महीँसक एहन नीक दूध विलाडिकेँ पिऔनाइसन पैघ मुर्खताक बात आन नहि भऽ सकैत अछि से निष्कर्षपर पहुँचलाह । ओ एहि समस्याक शीघ्र निदान ताकऽ लगलाह ।
एक दिनक बात अछि, भोरे उठि गोनु बाबु महीँसकेँ दुहलाह आ पत्नीके बजा कऽ दूध गरम करबाक लेल कहलन्हि । गोनु बाबुमे आएल ई अचानकक परिवर्तन पत्नीकेँ आश्चर्यचकित करबालेल पर्याप्त छल । पतिक ई लहडक कारण आब ओ राजाक सल्लाहकारक पत्नी नहि बनिसकैत छथि से शंका हुनकामे घर कऽ गेलन्हि । प्रत्यक्षतः ओ पतिसँ पुछलन्हि– किए ? आई बिलाडिके दूध नहि पिएबै कि ? गोनु पत्नीकेँ समझबैत कहलन्हि– आहाँ बड्ड सोझमति छी । पहिने दूध गरमाऊ कनेकालमे सबटा बात बुझि जेबै ।
ओम्हर सब दिन भोरेभोर दूध पिबाक आदति लागल विलाडि गोनु बाबुकेँ पछुअबैत भानस घरधरि अबिगेल छल । गोनु बाबु उधिआएल दूध एकटा वर्तनमे राखि कऽ विलाडिदिसि ससारि देलन्हि । विलाडि दूध पिबालेल अघुताएलसन हपाक दऽ वर्तनमे मुहँ घुसौलक, आहि रे बा ई कि ? झरकल मुहँ लऽ विलाडि चोट्टहिँ ओतऽसँ पडाएल । एहि घट्नाक बाद विलाडि कहियो दूध नहि पिलक । दूध देखितहिँ ओ पडा जाए । महीँसक दूध आब विलाडि नहि पिबैत छल तएँ ओ सब दूध आब गोनु बाबु ग्रास करैत छलाह । ओम्हर विलाडि आब दिन प्रतिदिन दुबराए लागल छल ।
दिनसब बितैत चलिगेल । एक वर्षक समय कोनदने विति गेलैक गोनु बाबुकेँ बुझबोमे नहि एलन्हि । निश्चित समयमे सभकेओ अप्पन–अप्पन महीँस आ विलाडि लऽ दरबारमे उपस्थित होइत गेलाह । राजा सभक विलाडि निरीक्षण कऽ रहल छलाह । एहि क्रममे ओ आब गोनु बाबुक आगाँ ठाढ छलाह । ई कि ? राजा गोनु बाबुक विलाडि देखि सन्न छलाह । दुबराएल, कमजोर, मरऽ मानसन भेल विलाडि देखि राजा गोनुसँ पुछलन्हि–गोनु बाबु ई कि ? विलाडिक एहन दशा ? ई तऽ कखन मरिजाएत तकर कोनो ठेकान नहि अछि ।
गोनु बाबुलग राजाक एहि जिज्ञासाक उत्तर जेना तयारे छल, ओ बजलाह– सरकार हम कि करितियैक? ई तऽ दूधे नहि पिबैत अछि ।
गोनुक एहन अविश्वसनीय बात सुनि आब आश्चर्यचकित होबाक बारी राजाक छलन्हि । विलाडि, आ दूध नहि पिबए ? ई कोना भऽ सकैत अछि ? राजेटा नहि ओतऽ उपस्थित सभकेओ गोनुक बात सुनि आश्चर्यचकित छल । राजा गोनुक कथनक परीक्षण करबाक बात नियार कऽ एहिक लेल आवश्यक व्यवस्था करबाक आदेश देलन्हि ।
राजाक आदेश सुनि गोनुक विरोधीसभक प्रसन्नताक सीमा नहि छल । ओसभ केओ प्रत्यक्ष तऽ केओ अप्रत्यक्ष एक प्रकारक बहसमे संलग्न छल–हँ, विलाडि कहाँदन दूध नहि पिलक । एहनो कहुँ भऽ सकैत छैक ? अरे, झूठो बजबाक एकटा हद होइत छै, एहनो झूठ भेलैए ? एखने परीक्षण हएत आ सत्त बाहर आबि जाएत । गोनुक झूठ पकडा जाएत तत्काले राजाद्वारा सुलीपर लटकाओल जेताह । आनक निष्कर्ष छल– एहिबेर गोनु बाबु फँसि गेलाह, हुनका एहन झूठ नहि बजबाक चाही ।
मुदा ई कि, देखि कऽ सभ सन्न रहिगेल । परीक्षाक परिणाम गोनु बाबुक पक्षमे गेल छल । विलाडि सत्ते दूध नहि पिलक । राजासेहो ई दृश्य देखि अवाक छलाह । आन दरबारीसभ परिणाम देखि कऽ खिन्न छल ।
राजा धीरे धीरे गोनुक बुधियारीक अनुमान कऽ लेने छलाह । ओ गोनुक विलक्षण बुद्धिमताक खुलि कऽ प्रशंशा केलन्हि । हुनक चातुर्यमे निहीत मर्म बुझि राजा गोनुकेँ अप्पन सल्लाहकारमे तऽ नियुक्त करबे केलन्हि बहुतरास बहुमूल्य उपहारसँ सेहो पुरस्कृत केलन्हि ।
मिथिलाक तात्कालीन नरेश विद्वान आ प्रतिभाशाली व्यक्तिसभकेँ अत्यन्त कदर करैत छलाह । ओ अप्पन दरबार विद्वानसभसँं सदति भरल रहए से चाहैत छलाह । एकबेरक बात अछि, नरेश अप्पन दरबारक कुशल आ चतुर व्यक्तिसभमेसँ चयन कऽ एकगोटेकेँ अप्पन सल्लाहकार नियुक्ति कर।बाक सोच बनौलन्हि । चयनक लेल दरबारियासभक बैसार बजाओल गेल । बैसारमे नरेश चतुर सहायकक परीक्षणमे सफल होबऽबलाकेँ बहुमूल्य उपहार देबाक घोषणा केलन्हि ।
बैसारमे उपस्थित सभकेओ अप्पन–अप्पन क्षमतामोताबिक चातुर्य प्रदर्शन करैत गेलाह मुदा राजाकेँ ककरोसँ सन्तुष्टि नहि भेटलन्हि । अपन ताकलमोताबिकक व्यक्ति ओहि बैसारसँ नहि प्राप्त हएत से बुझलाक बाद ओ सभक व्यवहारिक परीक्षा लेबाक निश्चय केलन्हि । मुदा परीक्षा लेबाक काज सोचलमोताबिक सहज नहि छल । मिथिलाक पण्डितगण शास्त्रीय विधामे निपूण रहल बात राजाकेँ खूब नीकजकाँ बुझल छलन्हि अन्ततः ओ निश्चित समयावधि निर्धारण कऽ व्यवहारिक परीक्षा लेबाक नियार केलन्हि ।
ओ ओतऽ उपस्थितसभकेँ एक–एकटा दूध देबऽबला महीँस आ विलाडि पकडबैत कहलन्हि– लिअ, आहाँसभ ई लऽ जाऊ, विलाडिकेँ महीँसक दूध पिएबै आ आजुक ठीक एक वर्षक बाद सभगोटे आऊ, जकर विलाडि हृष्ट पुष्ट आ बलगर हएत हम ओकरे अप्पन सल्लाहकार मनोनयन करब । एहि घोषणाक बाद राजबैसार समाप्त भऽ गेल । सभकेओ महीँस आ विलाडि लऽ अप्पन–अप्पन घर विदा भेलाह ।
सभक सपना राजाक सल्लाहकार बनब छल । निश्चय ई बड पैघ महत्वाकांक्षा छलैक सभक लेल । राजाक सल्लाहकार कोनो आजिगुजि बात तऽ छलै नहि, सभकेओ महीँस आ विलाडिक सेवामे जुटि जाइत गेलाह । मुदा गोनु बाबुक बात किछु अलग छल । विलाडिकेँ हृष्ट पुष्ट करबाक बात हुनका नहि अरघिरहल छलन्हि । किछु समय तऽ ओहो आनेजकाँं महीँसकेँ दुहलाक बाद चोट्टहि सब दूध विलाडिकेँ पिऔलन्हि । धीरे धीरे ओ महीँसक एहन नीक दूध विलाडिकेँ पिऔनाइसन पैघ मुर्खताक बात आन नहि भऽ सकैत अछि से निष्कर्षपर पहुँचलाह । ओ एहि समस्याक शीघ्र निदान ताकऽ लगलाह ।
एक दिनक बात अछि, भोरे उठि गोनु बाबु महीँसकेँ दुहलाह आ पत्नीके बजा कऽ दूध गरम करबाक लेल कहलन्हि । गोनु बाबुमे आएल ई अचानकक परिवर्तन पत्नीकेँ आश्चर्यचकित करबालेल पर्याप्त छल । पतिक ई लहडक कारण आब ओ राजाक सल्लाहकारक पत्नी नहि बनिसकैत छथि से शंका हुनकामे घर कऽ गेलन्हि । प्रत्यक्षतः ओ पतिसँ पुछलन्हि– किए ? आई बिलाडिके दूध नहि पिएबै कि ? गोनु पत्नीकेँ समझबैत कहलन्हि– आहाँ बड्ड सोझमति छी । पहिने दूध गरमाऊ कनेकालमे सबटा बात बुझि जेबै ।
ओम्हर सब दिन भोरेभोर दूध पिबाक आदति लागल विलाडि गोनु बाबुकेँ पछुअबैत भानस घरधरि अबिगेल छल । गोनु बाबु उधिआएल दूध एकटा वर्तनमे राखि कऽ विलाडिदिसि ससारि देलन्हि । विलाडि दूध पिबालेल अघुताएलसन हपाक दऽ वर्तनमे मुहँ घुसौलक, आहि रे बा ई कि ? झरकल मुहँ लऽ विलाडि चोट्टहिँ ओतऽसँ पडाएल । एहि घट्नाक बाद विलाडि कहियो दूध नहि पिलक । दूध देखितहिँ ओ पडा जाए । महीँसक दूध आब विलाडि नहि पिबैत छल तएँ ओ सब दूध आब गोनु बाबु ग्रास करैत छलाह । ओम्हर विलाडि आब दिन प्रतिदिन दुबराए लागल छल ।
दिनसब बितैत चलिगेल । एक वर्षक समय कोनदने विति गेलैक गोनु बाबुकेँ बुझबोमे नहि एलन्हि । निश्चित समयमे सभकेओ अप्पन–अप्पन महीँस आ विलाडि लऽ दरबारमे उपस्थित होइत गेलाह । राजा सभक विलाडि निरीक्षण कऽ रहल छलाह । एहि क्रममे ओ आब गोनु बाबुक आगाँ ठाढ छलाह । ई कि ? राजा गोनु बाबुक विलाडि देखि सन्न छलाह । दुबराएल, कमजोर, मरऽ मानसन भेल विलाडि देखि राजा गोनुसँ पुछलन्हि–गोनु बाबु ई कि ? विलाडिक एहन दशा ? ई तऽ कखन मरिजाएत तकर कोनो ठेकान नहि अछि ।
गोनु बाबुलग राजाक एहि जिज्ञासाक उत्तर जेना तयारे छल, ओ बजलाह– सरकार हम कि करितियैक? ई तऽ दूधे नहि पिबैत अछि ।
गोनुक एहन अविश्वसनीय बात सुनि आब आश्चर्यचकित होबाक बारी राजाक छलन्हि । विलाडि, आ दूध नहि पिबए ? ई कोना भऽ सकैत अछि ? राजेटा नहि ओतऽ उपस्थित सभकेओ गोनुक बात सुनि आश्चर्यचकित छल । राजा गोनुक कथनक परीक्षण करबाक बात नियार कऽ एहिक लेल आवश्यक व्यवस्था करबाक आदेश देलन्हि ।
राजाक आदेश सुनि गोनुक विरोधीसभक प्रसन्नताक सीमा नहि छल । ओसभ केओ प्रत्यक्ष तऽ केओ अप्रत्यक्ष एक प्रकारक बहसमे संलग्न छल–हँ, विलाडि कहाँदन दूध नहि पिलक । एहनो कहुँ भऽ सकैत छैक ? अरे, झूठो बजबाक एकटा हद होइत छै, एहनो झूठ भेलैए ? एखने परीक्षण हएत आ सत्त बाहर आबि जाएत । गोनुक झूठ पकडा जाएत तत्काले राजाद्वारा सुलीपर लटकाओल जेताह । आनक निष्कर्ष छल– एहिबेर गोनु बाबु फँसि गेलाह, हुनका एहन झूठ नहि बजबाक चाही ।
मुदा ई कि, देखि कऽ सभ सन्न रहिगेल । परीक्षाक परिणाम गोनु बाबुक पक्षमे गेल छल । विलाडि सत्ते दूध नहि पिलक । राजासेहो ई दृश्य देखि अवाक छलाह । आन दरबारीसभ परिणाम देखि कऽ खिन्न छल ।
राजा धीरे धीरे गोनुक बुधियारीक अनुमान कऽ लेने छलाह । ओ गोनुक विलक्षण बुद्धिमताक खुलि कऽ प्रशंशा केलन्हि । हुनक चातुर्यमे निहीत मर्म बुझि राजा गोनुकेँ अप्पन सल्लाहकारमे तऽ नियुक्त करबे केलन्हि बहुतरास बहुमूल्य उपहारसँ सेहो पुरस्कृत केलन्हि ।
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