मधेश आन्दोलनक मूल्य
०६२÷०६३ क जन–आन्दोलनक बाद मधेशमे दू टा आन्दोलन आकार लेलक । आब ई बात नव नहि रहिगेल । ई आन्दोलनसब मधेशक जनताक अधिकार प्रत्याभूतिक दिशामे वेश आश जगौने छल, मुदा आजुक दिनमे जँ मूल्यांकन करबाक बात उठौक तँ उत्तर समुचित ढंगे प्राप्त नहि भऽ सकैत अछि । ई धरातलीय यथार्थ अछि । आन्दोलनक मूल्य, मान्यता आ मर्म निश्चितरुपेँ ‘सोराज’क भावनाकेँ वल प्रदान करबामे सक्षम छल । संविधान एकरालेल एक मार्ग भऽ सकैत छल । मुदा एहिखन ई बाट बड कठिनाहसन बुझाइत अछि । एहिबातमे कोनो शंका नहि जे हमरालोकनिक नेतागण जिम्मेबार नहि भऽ सकलाह । आ, एकर परिणाम छैक जे मधेश भूमि अधिकार प्राप्तिसँ निरन्तर विलमिरहल अछि । उपर चर्चा कएल गेल आन्दोलसबहक सम्बन्ध नागरिक अधिकार, जात–जातिक परिचय, समानुपातिक विकास आ अवसर, आम जनताधरि संघीय लोकतन्त्रक अनुभूति आ परिवर्तनक संस्थागत सम्वद्र्धन आदिसँ अछि । एहिमेसँ कोनोटा विषय प्राप्त नहि भऽ सकत तँ ई बुझल जेबाक चाही जे नेतागण स्वयं आन्दोलनक अवमूल्यन कऽ रहल छथि । संविधानमे एहने विषय–वस्तु समावेश भऽ सकए आ मधेशक जनताक सहभागिताक आधारपर समतामूलक समाजक निर्माण भऽ सकए सएह विश्वासक आधारपर बहुतो सपूत बलिदानी देलनि ।
शहीद शव्दक निरन्तर अवमूल्यन कार्य जारी अछि । शहीदक योगदानकेँ नेतागणद्वारा अपना मनोनकुल व्याख्या करबाक अशोभनीय कार्य एखन वेश स्थान लऽ रहल अछि । जे दुखद अछि । एहि काजक हेतु मात्र राजनीतिक नेतासभपर जिम्मेबार थोपि आम जनताक भूमिका पूरा नहि भऽ सकैत अछि । वर्तमान अवस्थाक लेल हम आहाँ सेहो कोनो ने कोनोरुपेँ जिम्मेबार छी । ई बात सभकेँ स्वीकार करहि पडत, हमरालोकनि अपन नेतृत्वपर विश्वास कऽ कानमे तुर–तेल दऽ निचैनसँ सुति रहलहुँ । जाहिमोताविक खवरदारी होबाक चाहैत छल ओहिमे कतहु कोताहि रहिगेल । हमसभ सामान्यरुपेँ सम्पन्न होबऽबला काजसब सेहो नहि कऽ पाविरहल छी । नेता चुनि कऽ अप्पन भूमिका पूरा करबाक बात सोचनाई कतहु ने कतहु गलत छल । चुनलाहा नेताकेँ जिम्मेबार बनेबाक लेल जते दवाव सिर्जना कएल जेबाक चाहैत छलै ओते कार्य आम आदमीसँ नहि भऽ सकलैक । ई सत्य अछि । आई मधेशकेँ मूल्यांकन करहि पडत जे आन्दोलनक बादक मुख्य उपलब्धि कि भेल ? देशक अवस्थाअनुसार जँ विश्लेषण कएल जाए तँ देशकेँ कानुनक रुपमे सूचनाक हकसम्बन्धी ऐन–२०६४ भेटलैक । जे बहुत पैघ उपलब्धि छल । एहि उपलब्धिमे मधेशकेँ सेहो हिस्सा छैक । तकबाक चाही । एकरा छोडि नीतिगतरुपेँ खास उपलब्धि तकनाई कठीन अछि । गणतन्त्रप्राप्ति निश्चितरुपेँ एक बहुत पैघ बात छल मुदा गणतन्त्रप्राप्तिक बाद मधेशक ताहिमोताविकक उपलब्धिध भेटलैक कि नहि ? ई विषय वहसक सन्दर्भ भऽ सकैत अछि । गणतन्त्र प्राप्तिक बाद कोनो उपलब्धिए नहि भेलै सेहो बात नहि छैक । पहिचान संस्थागत होबाक दिशामे सन्तोष कएल जा सकैत अछि । संघीयता अपरिहार्य भऽ गेल । समावेशीक मुद्दा एकटा स्वरुप ग्रहण केलक । ई सब बात सही अछि । मुदा जखन जनताक दृष्टिए किछु देखनगर बातक अपेक्षा कएल जाइत छैक ताहिखन बहुत राश बात निराशापर जा अटकि जाइत छैक ।
आन्दोलनसबहक एहि पृष्ठभूमिमे स्वाभाविकरुपेँ मधेशक भावनाक प्रतिनिधित्वक बात महत्वपूर्ण अछि । मधेश आ मधेशवासीक अधिकार आ पहिचानक खातिर मधेशमे संघर्षक एक पूरान परम्परा अछि । ०६३ आ ०६४ क आन्दोलन एहि संघर्षक उत्कर्ष अछि । सत्य तीत होइत छैक । आई मधेशक सपना साकार करब आ आकांक्षा पूरा करबाक बातकेँ राजनीतिक स्वार्थसँ जोडल जा रहल छैक । आन्दोलनक मूल्य आ मान्यताकेँ भजेबाक काज भऽ रहल अछि । निश्चय ई बात दुखदायी अछि । बात कडू आ तीत अछि । मुदा सत्य इएह छैक । राजनीतिक दल मधेशकेन्द्रीत नहि अछि ओकरासबहक लेल मधेश, मधेशी आ मधेशक जनता सम्भवतः आत्मीय नहि अछि । निकटताक सम्बन्ध स्थापित नहि अछि । आन दल तँ आन, मुदा जे दल मधेशक कायापलटक वचनवद्धताक सँग देखबामे आएल छल, विगतक प्रदर्शनक आधारपर तकरोसबपर आशंका करबाक पर्याप्त आधार छैक । नेता आ पछिलगुवासभक उन्नति जाहिरुपमे भेलैक ताहिअनुपातमे एतहुका आम आदमीकेँ सम्बोधन नहि भऽ सकलैक । ई बात असत्य नहि अछि । मधेशकेन्द्रीत आ मधेशवादीक रुपमे दावी करैत आविरहल दलक नेताक कर्तव्य मधेश स्वार्थअनुकूल नहि हएव दुःखक बात अछि । आई मधेशकेन्द्रीत नेतासभ अपन दलीय स्वार्थसँ वशिभूत भऽ आन्दोलनकेँ अपनाअनुकूल व्याख्या करबाक धृष्टता कऽ रहल छथि । एतबए नहि आई मधेश कोनो खास वर्ग, पक्ष, समूह, जाति आ वादमे बँटबाक खतरा सेहो उत्पन्न भऽ गेल छैक, जे मधेशक भविष्यक लेल चिन्ताजनक बात अछि । अखनो विलम्व नहि भेल अछि, सभकेओ मिलि कऽ जिम्मेबारीक बोध कऽ दायित्व निर्वहनक प्रयास करी तँ उपलब्धि प्राप्त कएल जा सकैत अछि ।
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