गोनुक चारि अँगुरिया लाठी
धर्मेन्द्र विह्वल
गोनु झा लाठी बनेबामे बेस निपुण मानल जाइत छलाह । हुनक बनाएल लाठी बहुत प्रसिद्ध रहए । हुनक ई गुणक चर्चा गामगामधरि पसरल छल । लगपासक गामक लोकसभ सेहो लाठी बनबाबऽहेतु आवश्यक काठ—बाँस लऽ गोनु बाबुलग अबैत जाइत छल । गोनु बाबु उदारमना छलाह । ओ ककरो दुखित नहि बनबऽ चाहैत छलाह । ओ लाठी बना देबाक आश्वासन दऽ काठ—बाँस राखि सभकेँ घुरबैत छलाह । इएह कारण छल जे गोनुबाबुक ओसरासँ सटल कोठली एहन काठ—बाँससँ भरल पडल छल ।
भादव मासक एक दिन । पानि, आई छोडि काल्हि नहि बरिसवक अवस्थामे छल । चहुँदिसि पानिए पानि । एहनमे जारनिक कष्ट गोनुपत्नीकेँ खलिरहल छलनि । घरोमे रहल जारनि समाप्त भऽगेल छल । बाहर सुखाएल गेल गोइँठासेहो भिजिगेल छल । आब भानस करबालेल हुनका जारनि नहि भेटिरहल छलनि । हुनक माथ दुखाएब स्वाभाविके छल । ओ सोचमग्न छलीह, आब कि कएल जाए ? हुनका नहि रहल गेलनि आ गोनुसँ सम्बोधित भेलीह— कि कएल जाए ? आई चुल्हा कोना पजारु ? एकहु चोइटा जारनि नहि अछि ।
पत्नीक बातकेँ गोनु बाबु स्वाभाविकरुपेँ ग्रहण केलनि । वस्तुस्थितिसँ ओहो अनभिज्ञ नहि छलाह । जारनिविना चुल्हा नहि पजरत आ भानस नहि हएत से हुनको बुझल छलनि । ओ बजलाह—तऽ कि कहै छी हमरा ? एहनमे कत्तऽ जाउ हम जारनि—गोइँठा ताकऽ ?
पत्नी उपरागेभाव बजलीह—आहाँके तँ एहिना रहैत अछि । कोनो बातकेँ गम्भीरतासँ नहि लैत छियैक । हम पहिनेसँ जनबैत रही जे जारैन नहि अछि, पानि एहिना पडैत रहत तँ भोजन—भात बन्द भऽ जाएत । मुदा आहाँ कानेबात नहि देलियै । जारनि नहि के नहि तकलियै । ओ बजिते जा रहल छलीह—आब कि कएल जाए ? पानि रुकए तखनि ने कोनो बात हुअए । गोनुक जवाफ छल—प्रिय आहाँ व्यर्थ चिन्ता करैत छी । केहनो समस्याक समाधान गोनुलग रहैत छैक से आहाँकेँ नहि बुझल अछि ? आहाँ अखनोधरि हमरा नहि चिन्हि सकलौं । जँ ई बात नहि रहितैक तँ लोक गोनुकेँ गोनु किएक बुझितैक ?
पत्नी तामसे भुत्त छलीह । हुनका बुझेलनि जे गोनु एहु अवस्थामे चौल कऽ रहल छथि । ओ बजलीह—आहाँके तँ हम बाते नहि बुझैत छी, एत्तऽ केहन समस्यामे छी हम आ आहाँ चौल कऽ रहल छी । अपने मुहँ मियाँ मिट्ठु । तखनसँ अपने प्रशंसा भऽ रहल अछि । गोनु बाबु कहलनि—आहाँकेँ हमरापर विश्वास नहि अछि ? गोनु बाबु क्षणभरिमे गम्भीरसन बुझेलाह । शायद ओ कानो बात सोचिरहल छलाह । कनेकालक बाद हुनक मुखारविन्दपर चमक देखल गेल । ओ पत्नीकेँ कहलनि—बुझलियै कि, एकटा उपाय फुराएल । लोकसभ लाठी बनेबालेल जे काठ—बाँस राखिगेल अछि सएह जरा दियौक । पत्नी आश्चर्यमिश्रितभावे बजलीह—ई कि कहै छी आहाँ ? ओसभ मारत नहि ? गोनु बाबुक जवाफ छल—चिन्ता नहि करु, ओ आहाँक समस्या नहि अछि । हम समाधान कऽलेब ।
पत्नी तहिना केलनि । पानि किछु दिन पडैत रहल । भानस करबालेल गोनुपत्नी उएह काठ—बाँस जारैत रहलीह । कनेदिनक बाद उबेर भेल । लोकसभ अपनअपन लाठी लेबऽ आबऽ लागल । गोनु सभकेँ एकटा निश्चित तिथि दैत ओहि दिन आबऽ कहऽ लगलाह । एम्हर गोनु लाठी बनबऽमे जुटि गेलाह । निश्चित तिथिमे लोकसभ लाठी लेबऽ आबऽ लागल । गोनु लाठी बनाइएरहल छलाह । गोनु लाठी बनबैतकाल नहि मिलल कहि कुरहडिसँ जरऽसँ बाँकी रहल काठ—बाँसकेँ काटिकाटि कऽ छोट करैत जा रहल छलाह आ अन्त्यमे नहि बनल कहि फेकैत जा रहल छलाह । एवंक्रमे गोनु सयकडो लाठीकेँ कटैत नहि बनैत कहि फेकि देलाह । ओतऽ उपस्थित सभकेओ लाठीक माग कऽ रहल छल । ओम्हर गोनु बाबु कोनो जवाफ नहि दऽ रहल छलाह । गोनु बाबुकेँ किछु नहि बजैत देखि लोकसभ जोडजोडसँ चिचिआए लागल आ लाठीक माग करऽ लागल । भीडमे ककरो आवाज स्पष्ट नहि सुनाई दऽ रहल छल । हमरासन अदना लोककेँ सुनबऽहेतु आहाँसभकेँ एतेक जोडसँ चिचिआए पडल तँ बुझु जे हम एकगोटे आहाँसभक एतेक लाठी कोना बना सकैत छी ? हमहुँ मनुख छी । एक तँ लाठी बनेबालेल आहाँसभ हमरा कोनो पारिश्रमिक नहि देब आ उल्टे हमरा बातो कहब ? आबसँ हम लाठीक आकार छोट कऽ देलियैक अछि । एतऽ देखियो चारि अगुँरिया लाठीक अम्बार अछि । अपनअपन लाठी चिन्हु आ लऽ जाऊ ।
ओतऽ उपस्थित केओ गोनु बाबुक प्रतिवाद नहि कऽ सकल । सब उदास मुहँ लऽ अपनअपन घरदिसि विदा भेल ।
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