Wednesday, January 28, 2015

Mithila in Federalism

संघीयतामे मिथिलाक स्थान


२०७१क माघ ८ आमलोकहेतु वहुप्रतिक्षित छल । एहिदिन देशक नव संविधान एबाक छलैक, मुदा से नहि भऽ सकलैक । पहिल संविधानसभा विनुसंविधान देनहि कालकलवित भऽगेल पृष्ठभूमीमे सम्पन्न भेल दोसर संविधानसभाक निर्वाचनक सन्दर्भमे आ तत्पश्चात राजनीतिक दलसभ एक वर्षक भितर संविधान देबाक बात कबोल केने रहए । एतबए नहि, संविधानसभाक कार्यसुची तयार करबाकाल माघ ८ मे संंविधान घोषणा करबाक तिथिक पूर्वनिर्धारण सेहो  राजनीतिक दल स्वयं केने रहए । मुदा से नहि भऽसकल आ पूर्वनिर्धारित समयमे संविधान देबाक काजमे दलसभ असफल प्रमाणित भेल । एकर जिम्मेवारी आब के लेत ?
 ई यक्ष प्रश्न आब सभकसोझाँ ठाड अछि । एकर उत्तर देबाक क्रममे राजनीतिक दल एकदोसरापर आरोप—प्रत्यारोप मढिरहल अछि । ई आरोप—प्रत्यारोपमे मधेशकेन्द्रीत दल सेहो संलग्न अछि । विगत ०६३÷०६४क मधेश आन्दोलन देशमे संघीयताक मुद्दा स्थापित केने छल । एहिमे शंका नहि । मुदा एखन इएह मुद्दा ओझराएलसन बुझाइत अछि । मधेश भौगोलिकरुपसँ एकहि रंगक बुझाइत अछि ई फराक बात अछि, मुदा एकटा बात स्वीकार करहि पडत जे मेचीसँ महाकालीधरि पसरल मधेश भूमि पृथक—पृथक सांस्कृतिक माटि—पानिसँ पोसित अछि । ई बात मुलतः बुझनाई आवश्यक अछि । मुदा, मधेशकेन्द्रीत नेतालोकनि ई बात बुझबालेल कहियो तयार नहि भेलाह आ भावनामे बहि माओवादीक जातीय राज्यक व्यूहमे फँसि गेलाह । एकटा बात बुझऽ पडत जे माओवादी एहि देशमे उग्रवामपन्थक नेतृत्व करैत अछि जे सिद्धान्ततः संघीयताविरोधी अछि, ओ लोकतन्त्रपर विश्वास नहि करैत अछि । आ इहो बुझऽ पडत जे मधेशक नेता अधिकांशतः लोकतन्त्रवादी छथि आ संघीयता हुनक मुद्दा अछि । संघीयताकेँ सहजहिँ कार्यान्वयन होवऽ दऽ कांग्रेस, एमाले आ माओवादीलगायतक गैरमधेशवहुल नेतासभक दल मधेश मुद्दाकेँ स्थापित होइत नहि देखऽ चाहैत अछि । ई बात सत्य अछि । इएह कारण अछि, माघ ८ मे संविधान नहि आएल । एहि तिथिमे मधेशी शक्तिकेँ छोडि आन कोनो शक्ति संविधान लौबाक पक्षमे नहि छल । ओसभ बुझैत अछि, जे मधेश जेना संघीयता चाहैत अछि तहिना संघीयता जँ आबि जाए तँ मधेश सुदृढ भऽ जाएत । आ ई बात ओसभ नहि चाहैत अछि । दोसर बात, संघीयताक सम्बन्धमे मधेशकेन्द्रीतसभसँग सेहो कोनो स्पष्ट दृष्टिकोण नहि अछि । ओसभ मधेशकेन्द्रीत संघीयताक आधार सांस्कृतिक विरासतकेँ नहि बनबऽ चाहैत अछि । इएह कारण छैक जे संघीयता निर्धारणहेतु सांस्कृतिक आधारक पक्षपातीसभ मूल मधेश अभियानसँ सनैसनः कटलकटलसन अवस्थामे देखल जाए लागल अछि । मधेश शक्तिसभहेतु ई विचारणीय पक्ष अछि ।


देशभरि संघीयताक माग उठिरहल वर्तमान सन्दर्भमे नेपालक मिथिलाक वासिन्दा सेहो अपन पहिचानकेँ श्वर देबाक प्रयास कऽ रहल अछि । तकरे प्रकटीकरण विगतमे जनकपुरक मिथिला प्रदेशकेन्द्रीत आन्दोलन आ वैशाख १८क आततायी घटना छल । संस्कृतिकर्मीक संयोजनमे संचालित ई अभियानक सहभागीअनुसार ई ककरोप्रति विरोध वा समर्थनक कार्यक्रम नहि छल । मुदा मधेशक नामपर राजनीति कएनिहारसभकेँ ई अभियान उचित नहि बुझेलनि । मधेशकेन्द्रीत कोनो दल एहि अभियानकेँ समर्थन नहि केलक आ संघीयताप्राप्तिक एकटा अभियानकेँ कमजोर बनेबाक प्रयत्न होइत गेल । बहुतो मधेशकेन्द्रीत दलकेँ मिथिला आ मैथिल शव्दसँ परहेज छनि । ई सोच सत्ताधारी कांग्रेस आ एमालेक सोचसँ मिलैत जुलैत अछि । ई बात स्पष्ट करैत अछि, जे मधेशमे सेहो एकटा खास वर्गीयताक स्वार्थसँ ओतहुका राजनीति ग्रसित अछि । मधेशेमे मधेश भावनाप्रतिकूल गेनिहारसभ राष्ट्रियरुपमे अपन मुद्दा कोना स्थापित कऽ सकैत अछि ? अखनुका ओझराहटि ताहु मनःस्थितिक परिणाम अछि । इएह बात बुद्धभूमीक सन्दर्भमे सेहो लागू होइत अछि । 

मिथिला प्रदेशक माग जातीय सन्दर्भसँ नहि जोडाइत अछि । ई तँ एक उन्नत परम्परा आ उदात्त परिचयक द्योतक अछि । ई गौरवशाली इतिहास अछि । भारतीय उपमहाद्वीपक सबसँ पूरान सभ्यता आ संस्कृति अछि । किछु व्यक्तिकेँ मिथिलावासीक प्रदेशक ई माग नया लागि सकैत अछि मुदा स्वयंमे ई माग नव नहि अछि । एकर लम्बा पृष्ठभूमि छैक । नेपालेक जँ बात करी तँ कल्हुका मधेश आन्दोलन होबा पहिनेसँ मिथिलाक सम्बन्धमे कोनो ने कोनोरुपेँ आन्दोलन चलिरहल अछि । विगतक मधेश आन्दोलनसन अभियानकेँ सेहो भरमग्दुर सहयोग करबामे मिथिलावासीक सबसँ पैघ योगदान रहल छल  । मधेश आन्दोलनक क्रममे मिथिलाक बहुतो सपूतद्वारा प्रदान कएल गेल शहादत एकरे उदाहरण अछि । मधेशक अधिकार सुनिश्चितताक प्रत्याभूतिक अवस्थामे मधेशमे रहऽबला वर्ग, क्षेत्र आ समुदायक अधिकार सुनिश्चितताक विषयकेँ वल प्रदान कएल जा सकैत अछि–मिथिलावासीक इएह विश्वास छल आ अछि । मुदा कालान्तरमे मधेशक नाममे होबऽबला आन्दोलन जखन मिथिलाक मागकेँ श्वर नहि प्रदान कऽ सकल तखन एकटा शंकाक संचार हएब स्वाभाविक छल । जनकपुरक विगतक आन्दोलनकेँ इएह रुपमे बुझबाक चाही । मिथिला प्रदेशक माग एक शाश्वत माग अछि जे देशक भावनाक अनुकूल अछि । मिथिला आ मैथिली संस्कृति एहि देशक सांस्कृतिक आ ऐतिहासिक धरोहर अछि जकर संरक्षण राज्यक दायित्व अछि । पहिचानसहितक प्रदेशक माग भऽरहल वर्तमान सन्दर्भमे मिथिलाकेँ सम्मान भेटब आवश्यक अछि । मिथिला संघीयताक निर्णयविना मधेशक संघीयता अभियान पुरा हएब सम्भव नहि बुझाइत अछि । मिथिलाक लोककेँ ई बात निकजकाँ बुझल छैक आब ई बात मधेशी नेता विशेषतः मिथिलासँ प्रतिनिधित्व करऽबलाकेँ बुझनाई जरुरी अछि ।

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